अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

 भूने भुट्टे






 




मक्का मोटा अन्न था, ज्वार बाजरा संग
पर अंग्रेजी नाम पा, दिखा रहा है रंग
दिखा रहा है रंग, फ्लोर मक्के का आटा
कॉर्न फ्लैक्स बन बिकता, गादा कूटा-काटा
पॉप कॉर्न सुन, लावा-फुल्ला हक्का-बक्का
कल तक मोटा अन्न, कहा जाता था मक्का



भूने भुट्टे बेचता, नीबू नमक लगाय
धंधे में माहिर मगर, पैरों से असहाय
पैरों से असहाय, खबर पर सबकी रखता
चौराहे पर कौन सिपाही क्या क्या करता
"कौशल" गरमागरम, सभी में दाने दूने
बता बता कर रोज, बेचता भुट्टे भूने



भूना भुट्टा ही नहीं, मक्के की पहचान
इसके अनगिन रूप की, एक अनूठी शान
एक अनूठी शान, न समझें कोरी हाँसी
थी खरीफ की फसल, अब हुई बारामासी
"कौशल" कभी तलाक, न कोई छुट्टी-छुट्टा
रोजाना यदि एक, खिलायें भूना भुट्टा

- अनिल वर्मा
१ सितंबर २०२०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter