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          टाँक गए पैबंद

 
 
टाँक गए पैबंद व्योम पर
आते जाते घन

बरस रहे हैं रिमझिम बादल
जल्दी जल्दी चल
बड़ी देर में आया मौसम
कहीं न जाय निकल
अकुलाए बेदम हैं कब से
ये कुम्हलाये तन

इतनी उमस परोसे सूरज
हाँफ गए पल छिन
सूज गईं हैं आँखें अब तो
सूखे दिन गिन- गिन
बूँदें आईं तो लौटा है
पटरी पर जीवन

बींध गए तन कड़ी धूप के
बड़े नुकीले शर
छत पर सुबह-सुबह आ बैठी
एक हठी दुपहर
कहो बादलों से कर दें तर
भीतर-बाहर मन

- प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
१ अगस्त २०२४

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