अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर


         बादलों का खेल

 
 
घिर रहे चारों दिशाओं में सघन
बादलों का खेल नभ
पर देखिए

हर तरफ श्यामल घटाएँ घिर रही
साथ लेकर नम हवाएँ फिर रही
रंग नभ के खूब गहरे हो रहे
आसमानी रंग अपना खो रहे
भीगने को खूब करता आज मन
बादलों का खेल नभ
पर देखिए

छोर सारे खूब भीगे जा रहे
पेड़ पौधों को बहुत सरसा रहे
तृप्त होती जा रही पावन धरा
आसमां है गंध सौंधी से भरा
एक सिहरन से निखर जाता बदन
बादलों का खेल नभ
पर देखिए

जब घटाओं का समय आता निकट
धूप के साये सभी जाते सिमट
बिजलियां भी कौंधती सहसा कभी
गर्जना करते जलज बरबस तभी
शोर करता खूब झर उठता गगन
बादलों का खेल नभ
पर देखिए

- सुरेन्द्रपाल वैद्य
१ अगस्त २०२४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter