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         बादल यों बरसा करो

 
 
देखकर ही तो बादल यों बरसा करो
प्यास की आस बनकर ही
हर्षा करो

तुम कहीं
बाढ़ बनकर जो टूटे बहुत
और कहीं सूखा देकर भी रूठे बहुत
ये धरा जोहती है सदा बाट‌ जो -
गुम हुए आने की कहकर झूठे बहुत
आ भी जा, आ भी जा हम पुकारा करें -
देखकर थाली भोजन को
परसा करो

जो तबाही
मचाई है तुमने जहाँ
वो है मंजर भयावह सभी ने कहा
कश्तियों को किनारा मिला ही नहीं -
डूबते को सहारा दिया है वहाँ
जो गरजते हैं वो तो बरसते नहीं -
इसलिए लोग कहते न
तरसा करो

तुम कभी हो
धवल श्याम भी हो कभी
नेह हो, मेह हो, राम भी हो कभी
दामिनी जब तड़कती है आकाश में -
भय से होते प्रकंपित धरा पर सभी
कामना है धरा की तुम्हीं से यही-
नेह की ही यहाँ अब तो
वर्षा करो

- सुरेन्द्र कुमार शर्मा
१ अगस्त २०२४

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