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         बादल क्यों बरसो

 
 
नदी से आकर मिला है
एक टुकड़ा स्याह बादल

आसमानों से उतर कर
नाचता है झूमता है
इस तरफ़ से उस तरफ़ तक
मस्त हो कर घूमता है
छेड़ता है हर लहर को
शोख़ बेपरवाह बादल

दिख रहा था अभी ऐसा
अभी वैसा दिख रहा है
जिसे जैसा देखना है
उसे तैसा दिख रहा है
दिखा इसको आह! बादल
और उसको वाह! बादल

फूल कर कुप्पा हुई है
नदी की मुस्कान देखो
लग रहा यों कर रही है
हर घड़ी ऐलान, देखो
‘ज़िंदगी है नाव तो इस
नाव का मल्लाह बादल’

मैं तुम्हारे साथ ही हूँ
विदा को ऐसे समझना
यों गया, यों आ गया, बस
रास्तों पर आँख रखना
गुलाबी यादें थमा कर
चला अपनी राह बादल

- सीमा अग्रवाल
१ अगस्त २०२४

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