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     क्यों मनमीत नहीं आते हैं

 
 
ये बादल क्यों आ जाते हैं
क्यों मनमीत नहीं आते हैं

घहर-घहर ये बरस रहे हैं
अंतर्मन को परस रहे हैं
सरस हुआ जग-जीवन सारा
कर किलोल पक्षी गाते हैं

धुल-धुल पादप निखर रहे हैं
वायुवेग से सिहर रहे हैं
युग्म-युग्म में बैठ कबूतर
मिलकर पाँखें खुजलाते हैं

नद-निर्झर सब उमड़ चले हैं
सब तटबंध तोड़ निकले हैं
सूखे ताल, तलहटी दरकी
थी, अब देखो लहराते हैं

समय, सुकाल बहुत थोड़ा है
निर्मम हाथ लिए कोड़ा है
कुसमय बिजली गिर जाती है
सब अनुबंध टूट जाते हैं

- राममूर्ति सिंह 'अधीर'
१ अगस्त २०२४

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