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         आए बादल

 
 
तप्त धरा की खोज-ख़बर लेने
आए बादल

बाग़-बगीचे
हरे-भरे जंगल मुरझाये हैं,
ताल-तलैया, नद-नाले-पोखर पपड़ाये हैं,
कर्मयोग को व्याख्यायित करने
छाए बादल

श्वेत-श्याम ये
मोहक वारिद हैं, या कि मसीहे,
उद्यत-से हैं नर्तन-गायन को मोर-पपीहे,
देख धरा का आकुल-व्याकुल मन
धाए बादल

श्री-वर्षण को
सजी हुई नभ में वृष्टि-पालकी
आस लगाये जड़-चेतन, दोनों सुधा-पान की
बूँद-बूँद में अष्ट-सिद्धि, नौ निधि
लाए बादल

- राजेन्द्र वर्मा
१ अगस्त २०२४

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