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          बादलों के संग

 
 
बादलों के संग क्यों उड़ने
लगा है मन

हरित वर्णा हो गई है साँवरी धरती
बादलों के प्यार ने क्या चातुरी कर दी
रिमझिमी बरसात की बूँदें निरंतर
नव प्रणय की भावभीनी अंजुरी भरतीं
इन्द्रधनुषी स्वप्न के संग रात भर
बीन के तारों सदृश बजने
लगा हैं मन

श्रावणी सन्देश लेकर यह घटा चमकी
नयन में मानो विरह की ज्वाल सी धधकी
यह हवा लाई है क्या संदेश प्रियतम का
आ गई है याद मानो मिलन के क्षण की
कल्पना के जाल क्यों बुनने
लगा है मन

- पद्मा मिश्रा
१ अगस्त २०२४

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