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         अरे बादल

 
 
अरे रे रे रे बादल
ठहर जा रे दो पल!

हुई बावरी जो मैं
निकली निशा में
दिशाएँ ही छेड़ें तो
छिपूँ किस दिशा में
हुई रे मैं तो पागल!

लुभाती थीं मन को
जो शीतल हवाएँ
कहूँ सच, वही आज
तेवर दिखाएँ
उड़े रे मेरा आँचल !

रुकें ना कदम ये
जो प्रियतम पुकारें
बनीं आज सौतन
ये रिमझिम फुहारें
बहे रे मेरा काजल!

- ओमप्रकाश तिवारी
१ अगस्त २०२४

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