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         आज फिर

 
 
आज फिर बादल
हमारे गाँव होकर
आ रहा है

दृष्टि में उल्लास उसके
पाँव में ऊर्जा भरे है
खेत की माटी लपेटे
नयन से पानी झरे है
अंजुरी में मोतियों सी
सजल बूँदें ला रहा है

आज फिर बादल
हमारे गाँव होकर
आ रहा है

गाँव में तुलसी हमारी
है खड़ी मुस्कान धारे
घन उसे नहला रहा अब
डाल कर अमृत फुहारें
मुट्ठियों में पत्तियाँ
आशीष की दो ला रहा है

आज फिर बादल
हमारे
गाँव होकर आ रहा है

गाँव वालों ने विदा में
है पिन्हायी एक माला
इंद्रधनुषी पट पहनकर
श्याम घट लगता निराला
नेह का पाथेय अपनी
पोटली में ला रहा है

आज फिर बादल
हमारे
गाँव होकर आ रहा है

- डॉ मंजु लता‌ श्रीवास्तव
१ अगस्त २०२४

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