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         बादल आए

 
 
रिमझिम-रिमझिम
बरसी बूँदें
सोये बीज अँखुआये
खेत-बाग हर्षाये
उमड़-घुमड़ कर बादल छाए

नीम की डाल पे
पड़ गये झूले
कजरी स्वर मन भाये
फिर भी याद सताए
उमड़-घुमड़ कर बादल छाये

झूम- झूम कर
नाची बुधिया
धानी चूनर लहराये
मन ही मन इतराये
उमड़-घुमड़ कर बादल छाये

अमराई में
भीगी कोयलिया
कुहू-कुहू कर गाये
जाने किसे बुलाये
उमड़-घुमड़ कर बादल छाये

- मधु प्रधान
१ अगस्त २०२४

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