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         बादल बरसे हैं

 
 
तुमको लगता है केवल बादल बरसे हैं
मुझे पता है किन प्रश्नों के
हल बरसे हैं

ज्यों प्यासे के पास कुआँ चलकर आया है़
नीलगगन पर नेह-छत्र बनकर छाया है
तपते मन पर ज्यों ख़ुशियों के
पल बरसे हैं

लाये हैं ऊसर की ख़ातिर धानी चूनर
जागा है चातक कंठों में फिर से नव स्वर
दुबलायी नदियों के ज्यों
संबल बरसे हैं

बरसे हैं सुनकर स्वागत को कजरी आई
फूल हँसे हाथों में मेहँदी भी मुस्काई
इंतज़ार के हिस्से मीठे
फल बरसे हैं

- गरिमा सक्सेना
१ अगस्त २०२४

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