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         बदरा आए

 
 
धरती पर है धुंध, गगन में
घिर-घिर बदरा आए

लगे इन्द्र की पूजा करने
नम्बर दो के जल से
पाप-बोध से भरी धरा पर
बदरा क्योंकर बरसे
कृपा-वृष्टि हो बेकसूर पर
हाँफ रहे चैपाए

हुए दिगम्बर पेड़, परिन्दे-
हैं कोटर में दुबके
नंगे पाँव फँसा भुलभुल में
छोटा बच्चा सुबके
धुन कजरी की और सुहागिन का
टोना फल जाए

सूखा औ’ महँगाई दोनों
मिलते बाँध मुरैठे
दबे माल को बनिक निकाले
दुगना-तिगुना ऐंठे
डूबें जल में खेत हरित हों
खुरपी काम कमाए

- अवनीश सिंह चौहान
१ अगस्त २०२४

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