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       बादलों की पसंद

 
 
कई सालों से घिरे नहीं मेह
ठहरे ही नहीं बादल आकाश में

लोगों ने किए यज्ञ
बच्चों ने गाया -
कारे मेघा पानी दे
पानी दे गुड़धानी दे
गुड़धानी तो मिली
लेकिन बरसा नहीं पानी
पेड़ विहीन धरती पर

बादलों को मिली ही नहीं
कोई ठौर कि
ठहर कर बरसा सकें अपना
संचित नीर
बेघर मुसाफिर से
होते रहे इधर से उधर
ढूँढ़ते रहे पनाह

अबकी मिल गयी है पनाह
बच्चों ने कभी यहाँ
रोपे थे पौधे
पौधे अब हो गए हैं जवाँ
उन्हीं फुनगियों पर
आ ठहरे हैं बादल
घिर आई है घटा काली
बच्चे आज फिर गा रहे हैं
वही गीत और रोप रहें हैं पौधे
बच्चे जान गए हैं
बादलों की पसंद

- उर्मिला शु्क्ल
१ अगस्त २०२४

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