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       मेघराज इठला रहे

 
 
मेघराज इठला रहे अंबर तल पर आज
बूँदों के सर सज रहा रंग बिरंगा ताज

आतुर हैं बूँदे सभी उतर धरा पर जाँय
सहमी हैं बूँदें सभी सूरज से घबराँय

काली बदरी छा रही मन में आस जगाय
बड़ी निगोड़ी पवन है, उड़ा उड़ा ले जाय

मेघराज डरने लगे धरती पर क्यों जाँय
तपा बहुत डाली धरा हम ही झुलस न जाँय

काले मेघा छा गए धरा रही हर्षाय
मनमौजी मेघा सभी तरसा-तरसा जाँय

पहले धरा सँवार तू फिर करना मनुहार
हम निडर हो आएँगे बरसाएँ जलधार

- निर्मला जोशी 'निर्मल'
१ अगस्त २०२४

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