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       बादल नहीं आता

 
 
ग़मो की धूप ख़ुद सहता रहा है
पिता के जैसा इक बादल घना है

है सावन, बेटियाँ घर आ रही हैं
तो खुशियों को ये घर प्यारा लगा है

बहुत ख़ुश हैं ये बादल और धरती
कि बेटा माँ से मिलने आ रहा है

ज़मी से गुनगुनाकर बूँद बोली
वो बादल बारिशों को ला रहा है

तजुर्बा है, कि अब होगा उजाला
अगर अँधियारा कुछ ज़्यादा घना है

- सुवर्णा शेखर
१ अगस्त २०२४

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