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       काले छाते हैं बादल

 
 
अम्बर की नगरी में काले, काले छाते हैं बादल
केश घटाओं के बिखरे हैं, या मदमाते हैं बादल

कैसे तेवर दिखलाते हैं, उमड़ घुमड़ कर शोर मचा
शायद खोज खबर धरती की, लेने आते हैं बादल

सूखे ताल तलैया को औ, सूखी सी अमराई को
मुरझाए से पौधों को फिर से सरसाते हैं बादल

सूरज के संग आँख मिचौली, चंदा के संग बरजौरी
और सितारों पर भी अपनी, धाक जमाते हैं बादल

कब आएँगे, कब बरसेंगे, पूछ रही प्यासी धरती
धूप छाँव का खेल दिखा कर, हमें सताते हैं बादल

मेघदूत बन आती बूँदे, ले संदेशा सावन का
बाँच बाँच पाती बरखा की, खूब सुनाते हैं बादल

रिमझिम रिमझिम पड़ें फुहारें, ठंडी ठंडी पुरवाई
डलते जब सावन के झूले, कजरी गाते हैं बादल

- रमा प्रवीर वर्मा
१ अगस्त २०२४

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