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       सुनते नहीं बादल

 
 
अनुनय विनय किसी की भी सुनते नहीं बादल
ऊम्मीद जिनसे थी वही बरसे नहीं बादल

पानी बगैर चारो तरफ लोग परेशान
आखिर क्यों सबका दर्द समझते नहीं बादल

वादे किये अगर तो निभाओ भी बरस कर
वादे तमाम करके मुकरते नहीं बादल

दादुर पपीहा मोर बुलाते हैं तुम्हें सब
क्या बात है जो घर से ही निकले नहीं बादल

सूखा कभी तो बाढ़ से देते हो तबाही
हम लोग आज तक तुम्हें समझे नहीं बादल

- राम अवध विश्वकर्मा
१ अगस्त २०२४

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