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        मल्हार सुनाएँ बादल

 
 
झुंड बनाकर आएँ बादल
फिर मल्हार सुनाएँ बादल

शीतलता के छींटे देकर
भू को होश में लाएँ बादल

कोयल मोर विरहनी चातक
सब में आस जगाएँ बादल

भारी आँसू पी नदियों के
मन हल्के कर जाएँ बादल

भूमि-पुत्र को खुश करते हैं
छप्पर को डरपाएँ बादल

उनका कर्म बरसना है जब
नाहक शोर मचाएँ बादल

माँ कहती सुत के जीवन में
दु:ख के कभी न छाएँ बादल

जीवन, भरकर 'रीत' है जाना
यह दर्शन समझाएँ बादल

- परमजीत कौर 'रीत'
१ अगस्त २०२४

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