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बादल भीतर बरस रहे हैं |
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बादल भीतर बरस रहे हैं, फिर
भी सूखा मेरा मन
तेरी यादें धुँधली हो गई, कैसा रीता मेरा मन
स्कूटर भी टॉप-गियर-रफ्तार नहीं ले पाती थी
लूना तेरी आगे - आगे पीछे चलता मेरा मन
टेलीफोन की इक घंटी से मन व्याकुल हो जाता था
मिस्ड कॉल जिसको तुम कहते फीलिंग कहता मेरा मन
तुमने देखा और इक बादल टूट के ऐसे बरसा था,
बारिश की बूँदों में घुलकर जैसे बरसा मेरा मन
चंद अधूरे ख्वाब भी होते ख़लिश भी दिल में रहती पर
तुझसे गर न मिलता मैं तो मेरा होता मेरा मन
- नितिन जैन
१ अगस्त २०२४ |
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