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       बादल से तितली टकराई

 
 
छू कर तुझको बादल से तितली टकराई
कड़की बिजली रात झमाझम बारिश आई

इंडिया गेट पे भुट्टे खाती रात अकेली
सूनी सड़कें तन्हा यादें मैं तन्हाई

उसी पुराने खोखे पे चल बैठें कुछ पल
सर्द रात है चाय अभी तो है गरमाई

कहा सुनी थी दो आँखों की दो आँखों से
धड़ से खुला किवाड़ आँख पलटी घबराई

कुछ जाने पहचाने लफ़्ज़ों की दस्तक है
ख़त के टुकड़े ले आई है क्या पुरवाई

साड़ी पहने वक़्त गया पर छोड़ गया था
सैंडल की खट खट धुंधली धुंधली परछाई

सिलवट सिलवट बिस्तर बैठा ऊँघ रहा था
रात हुई तकिए महके चादर शरमाई

- दिगम्बर नासवा
१ अगस्त २०२४

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