अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर


       हुक्म बजाए बादल

 
 
किस के करम से आये बादल
किस का हुक्म बजाये बादल

स्वाती बूँद गिराये बादल
चातक प्यास बुझाये बादल

प्यासी धरती प्यासा जीवन
शीतल जल बरसाये बादल

दादुर मोर पपीहा बोले
सब में प्राण जगाये बादल

पोखर ताल मगन हैं देखो
पनिहारी मन भाये बादल

छम छम नाचे वर्षा रानी
देख सभी हर्षाये बादल

'दर्द' तबाही होती है तब
अगर कभी फट जाये बादल

- डा. देवनाथ विश्वकर्मा 'दर्द'
१ अगस्त २०२४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter