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       बादल नहीं आता

 
 
बरसने को मेरी छत पर कोई बादल नहीं आता
अगर आता भी है तन को भिगो कर के नहीं जाता

मुझे कितना सताएगा नहीं मालूम ये सावन
पिया परदेस में हैं तो ये सावन भी नहीं भाता

बहुत आती है अक्सर याद उन सावन के झूलों की
बहारें बन के अब सावन मेरे दिल पर नहीं छाता

हसीं रुत है हँसीं मंज़र नज़ारे भी बहुत दिलकश
कोई भी ज़ुल्म मुझ पर अब कभी मौसम नहीं ढाता

हुई मुद्दत मिले तुझ से बता कैसे मिलूँ मैं अब
वो मजबूरी है क्या भाई तू मिलने भी नहीं आता

मैं भाई हूँ तेरा ‘आभा’ मैं तुझ से प्यार करता हूँ
यही वो बात है जिसको जुबां से कह नहीं पाता

- आभा सक्सेना ‘दूनवी’
१ अगस्त २०२४

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