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         ठंडा शर्बत घोल

 

परमेश्वर ने जब दिया, यह जीवन अनमोल
बोली-वाणी में मनुज
ठंडा शरबत घोल

कितने झंझट-झोल हैं, मानुष तेरे साथ
मृदुल भाव, व्यवहार को लोग झुकाते माथ
खरी खरी को छोड़ दे, त्याग दर्प, अभिमान
संग सुमन के शूल भी
शब्द शब्द को तोल

ऊष्ण हवा का जोर है, मौसम बेईमान
आदत से लाचार हो करता छल इंसान
मुँह में मिसरी की डली, सजे अधर मुस्कान
सबके प्रिय होना अगर
शीतल हों मृदु बोल

कुछ होते गंभीर जन,कुछ चंचल, वाचाल
दुनियादारों ने रचा विकट सुनहरा जाल
छल प्रपंच निष्णात जो उनके रूप अनेक
उर-प्रांतर से श्याम-पट
बाहर उज्ज्वल खोल

सुधी सहज रहते सदा, निभा रहे युग-धर्म
किन्तु न सुधरें खल विकट, जिनका मोटा चर्म
निरावरण सच्चे दिखें, हृदय पटल से नेक
कर्महीन ही पीटते
झूठ- मूठ के ढोल

- विश्वम्भर शुक्ल
१ जून २०२४

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