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         यह शर्बत खट्टा मिट्ठा

 
यह शरबत खट्टा-मिट्ठा है

ऊपर से ठंडा लेकिन तासीर गरम है
पीने वाला मरे, बचे क्या नेक करम है
चल जाये दूकान तुम्हारी, भले चार दिन,
नाम, दाम तुम खूब कमाओ पल पल, छिन-छिन
खानदान की पृष्ठभूमि
काला चिट्ठा है

है गिलास तो कांच, मगर क्यों रंग हरा है
कहने को प्याऊ, मकसद में जहर भरा है
जी भर कर लो पाप, पुण्य बस एक कमा लो
खटाखट्ट खाते में थोड़ा दही जमा लो
लस्सी, अस्सी में बेचो
जल में गिट्ठा है

पीने वाले रोज मुफ्त ही ढूँढ रहे हैं
भले आँत जल जाय, आँख वे मूँद रहे हैं
दिन को कहो रात कह देंगे साथ तुम्हारे
लात मारकर करो भले तुम एक किनारे
क्षणिक लाभ लेने वाला
उल्लुक-पिट्ठा है

- उमाप्रसाद लोधी
१ जून २०२४

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