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       खूब पीजिये ठंडा शर्बत

 
ग्रीष्म ऋतु ने दस्तक दी है
खूब पीजिए
ठंडा शरबत

देखो तीखी धूप बहुत है
कहीं न मिल पाती राहत है
सूख रहे हैं कोमल पत्ते
कदम राह चलते है थमते
पेय कहीं शीतल मिल जाए
तब आएगी तन में
हरकत

ठंडेफल खाने का मौसम
तरबूजों ने ठोका है खम
मिल जाए जब आम का पना
समझो बिगड़ा काम है बना
शिकंजी की बात निराली
नीबू के गुण पाओ
अनवरत

सत्तू का शरबत मन भाए
तन-मन सहज तृप्त हो जाए
सभी चाहते हैं कुछ शीतल
कुल्फी की चाहत है हरपल
छांव सघन में कुछ सुस्ता लें
जब मिल जाए थोड़ी
फ़ुरसत

बादल आते जाते रहते
चुप हैं कभी नहीं कुछ कहते
घटा सुहानी जब छा जाती
तब कुछ कुछ मन को हर्षाती
बादल में छुपता जब सूरज
सबके मस्तक हो
जाते नत

- सुरेन्द्र पाल वैद्य
१ जून २०२४

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