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       झुलस रहा तन

 
झुलस रहा तन, ढूंढ रहा मन मिले छाँव की नरमी
हाहाकार मचा देती है
मई जून की गरमी

चलते लू के गरम थपेड़े करे सड़क पर दंगा
पड़े मार तो पना आम का कर दे सबको चंगा
कड़ी धूप से बचकर रहना
कहती हरदम मम्मी

बहुत बुरा है हाल इन दिनों उगते चढ़ते ढलते
थक जाते हो सूरज तुम भी दिन भर जलते जलते
आओ पीलो ठंडा शरबत
संग है मीठी खुरमी

कैरम लूडो बावन पत्ती कहीं खेल शतरंजी
पर्वत से दिन कटते पीकर लस्सी छाछ शिकंजी
मजे ले रहे इस गरमी के
मोना राजू पम्मी

हर मौसम के रंग अलग हैं जैसा जिसको भाये
बारिश गरमी और शीत से धरती ये मुस्काये
नहीं एक से,बदलेंगे दिन
कहो न सूरज जुल्मी

- श्रीधर आचार्य शील
१ जून २०२४

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