अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

         गर्मी सता रही है

 
आसमान से आग बरसती
आँच धरा को जला रही है
आकुल-व्याकुल जड़ चेतन सब
गर्मी सबको सता रही है

बिजली पानी के संकट से
महानगर तक जूझ रहे हैं
जननायक महलों में बैठे
नई पहेली बूझ रहे हैं
उनके तरण ताल के अंदर
एक जलपरी नहा रही है

जेठमास में सूरज दादा
दादागीरी दिखा रहे हैं
जो भी दिखे सामने उसपर
लू के हंटर चला रहे हैं
दादी जी लू से बचने के
सौ-सौ नुस्खे बता रही हैं

नहीं मिलेगी चाय किसी को
भाभी शरबत बना रही हैं
दोपहरी में अम्मा सबको
पना आम का पिला रही है
प्यासी गौरैया आँगन में
फुदक-फुदक फड़फडा रही है

बजा-बजा घंटी गलियों में
अनवर कुल्फी बेच रहा है
माथे पर बह रहा पसीना
बार-बार वह पोंछ रहा है
लेकर इक कुल्फी मजदूरिन
दो बच्चो को चटा रही है

- डॉ. शिवजी श्रीवास्तव
१ जून २०२४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter