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           शर्बत सा मन
 

 

ठंडे शर्बत सा मन ले कर
दुनियादारी के पनघट पर
बोलो बंधु
कौन बचा है

क़द्दावर सारे जीवन के
हुए प्रतिष्ठित जन के बल पे
कौन जानता
गठबंधन में
दीन पिसा है

कहाँ प्यास तृप्ति पाती है
किरन सतह को चमकाती है
कौन देखता
भीतर तक
अंधेर मचा है

यह जो सच, तो यह भी सच है
शीतलता ही जीवन सत है
मेंहदी बोली
बिना पिसे कब
कौन रचा है

- शार्दुला नोगजा
१ जून २०२४

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