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       प्यार तुम्हारा ठंडा शरबत

 
दुनियाभर की आपाधापी
जैसे मई-जून की गर्मी
प्यारा तुम्हारा
ठण्डा शरबत

जीवन कठिन प्रमेय हुआ जब
एवरेस्ट-से हुए हौसले
झुलस रहा था संघर्षों में
तुमने हाथ रखा कन्धे पर
पलक झपकते
भागी गुरबत

लगा कि सबकुछ जाने वाला
हर झप्पी तब हुई शिकंजी
स्वप्न हुए गतिमान हिरण-से
तुम्हें छुआ मन हुआ कबूतर
बौने लगते
ऊँचे परबत

- डॉ. शैलेश गुप्त 'वीर'
१ जून २०२४

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