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       जिंदगी शरबत-सी

 
बने यह जिन्दगी शरबत सी ठंडी और मीठी हो
बने यह जिन्दगी शरबत सी
ठंडी और मीठी हो

गगन में तप रहा सूरज धरा पर आग बरसी हो
तरसता आदमी का मन कोई शीतल सी सरसी हो
हरे पेडों की छाया में हवाएँ मुक्त बहती हों
यही मन कामना करता यही एक आस बाकी है
बने यह जिन्दगी शरबत सी
ठंडी और मीठी हो

कहीं पर गुम है हरियाली सुखद सी छाँव पेडों की
चहकते पंछियों का गीत महकती शाम नीडों की
नदी की घार सँग बहती कहानी जिंदगी कहती
मदिर सपनों से जागी हर सजल आँखें उनींदीं हों
बने यह जिन्दगी शरबत सी
ठंडी और मीठी हो

- पद्मा मिश्रा
१ जून २०२४

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