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         याद ठंडाई आई

 
तप्त पवन तड़पाती है, देह शिथिल हो जाती है
गर्मी ने व्यथा बढ़ाई है
याद ठंडाई आई है

रात सहम कर सकुचाई, फैल गये दिन बरगद से
हुए निरंकुश सूर्य देवता, भेजें ताप किरण नद से
दिनभर स्वेद टपकता है, समय न काटे कटता है
गर्मी ने व्यथा बढ़ाई है
याद ठंडाई आई है

सुमन भले ही महक रहे, प्यासे पक्षी भटक रहे
भँवरे की अनमन गुन गुन, सुने मजूर उदर की धुन
धूप जलाती उनका तन, भीतर से रोता है मन
सूरज ने अगन लगाई है
याद ठंडाई आई है

तन तडपे होकर अधीर, आते ठंडे पेय याद
नींबू, छाछ, बेल, लस्सी जलजीरे का बड़ा स्वाद
घूँट घूँटकर गटक शिकंजी, मन में उठें भाव सतरंगी
लाए तन में तरुणाई है
रास ठंड़ाई आई है

- ओम प्रकाश नौटियाल
१ जून २०२४

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