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         साथ तुम्हारा

 
सूखी बंजर धरती पर जो
उमड़े घुमड़े
उन बूँदों की शिरकत सा है
साथ तुम्हारा
तपती लू में
ठंडे ठंडे शरबत सा है
साथ तुम्हारा

गर्म जेठ की दोपहरी
सा ताप दिखाए जीवन
संघर्षों ने सुखा दिया है
भीतर का हर सावन

ऐसे जिद्दी मौसम में भी
तनी हुई जो
उस छतरी की हिम्मत सा है
साथ तुम्हारा

हर दिन हर पल दुनिया दारी
विलोमार्थ सिखलाती
जहाँ आस छाया की होती
वहीँ धूप बरसाती

खट्टे खट्टे नींबू पानी
में चीनी की
मीठी मीठी नेमत सा है
साथ तुम्हारा

पड़े थपेड़े गर्म हवा के
आकुल मन घबराये
कहाँ चैन के झोंके गायब
जब ये समझ न आये

तब उस अकुलाये अंतस को
ठंडाई में
केसर की सी बरकत सा है
साथ तुम्हारा

- निशा कोठारी
१ जून २०२४

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