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         ठंडा शर्बत पीते हैं

 
आओ बैठें थोड़ा-थोड़ा
ठण्डा शरबत पीते हैं

मौसम तो है सिर्फ बहाना
यह तो आते-जाते हैं
सर्दी गरमी या हो बारिश
मन को बहुत लुभाते हैं
आओ मिलकर सुख-दुख बाँटें
देखो ऐसे जीते हैं
आओ बैठें थोड़ा-थोड़ा
ठण्डा शरबत पीते हैं

कठिन पहेली जैसी जिनगी
यह अनबूझ पहेली है
उलझन बुलझन प्रेम-प्रीत की
इच्छाशक्ति सहेली है
बाहर है मुस्कान होंठ पर
अंदर से सब रीते हैं
आओ बैठें थोड़ा-थोड़ा
ठण्डा शरबत पीते हैं

उत्सवधर्मी है यह जीवन
खुशी श्वांस में टाँकेंगे
दूर देश से चंदा सूरज
हमें गगन से झाँकेंगे
घाव जिगर के हँसी-खुशी से
कुछ ऐसे हम सीते हैं
आओ बैठें थोड़ा-थोड़ा
ठण्डा शरबत पीते हैं

- मनोज जैन मधुर
१ जून २०२४

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