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         शरबत जैसे दिन

 
आएँगे कब भरे जेठ में
राहत जैसे दिन
तपती लू में प्यास बुझाने
शरबत जैसे दिन

दूर-दूर तक छाँव नहीं है
तपती सड़कों पर
इमारतों ने छीन लिए हैं
टेसू, गुलमोहर

बीत रहे हैं कड़ी धूप में
आफ़त जैसे दिन

सूखे कंठों की सुनने को
नल तैयार नहीं
नदियों के हिस्से में
उनकी कलकल धार नहीं

बीत रहे हैं 'मेघ! मेघ!' कर
मिन्नत जैसे दिन

तपती सुबह जी रही है
दुपहर की ख़ामोशी
तपे तवे पर साँझ दिखाए
कहाँ गर्मजोशी

फिर भी पगड़ी बाँध खड़े हैं
किल्लत जैसे दिन

- गरिमा सक्सेना
१ जून २०२४

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