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         दिन शर्बती हुए

 
जीवन में तुम आए
जेठ माह–से संघर्षी ये दिन
शर्बती हुए

चुभते-तपते शूलों पर
मृदु-चन्दन आलेपन
औषधीय फूलों-की
मुस्कानों का अनुलेखन
झुलसे तापमान में तुम
खस की
फुर्फुती हुए

घटता–बढ़ता रक्तचाप
संतुलित संचरण हुआ
लू के गहन थपेड़ों का
आकस्मिक क्षरण हुआ
बोल बेल–से गुणकारी
सुख की
पावती हुए

पारा पेंतालिस पार हुआ
अंतर में उड़े अगन
ठण्डाई उँगलियाँ लगीं
राहत की एक छुअन
नाकारा मारे फिरते
सपने
अर्हती हुए

- भावना तिवारी
१ जून २०२४

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