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       ठंडा शर्बत पीजिये

 
ठंडा शर्बत पीजिए
आग हो गयी घाम
गर्मी की ऋतु मिट गयी
है जाड़े का नाम

प्राणी में जैसे जागी है प्यास
टकटकी बाँधे सब मेघ की आस
फुर्सत खेतों से हुए
था खेती का काम

कृशकाय नदिया है सूखे झरने
आएगी पावस दुख-दर्द हरने
दिवस झरा है पात सा
बदसूरत सी शाम

- अविनाश ब्यौहार
१ जून २०२४

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