अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

       शरबत दस्तरखान (दोहे)

 

सूखी नदिया पेट की, जीव हुआ हलकान
रंग-बिरंगे काँच मे, शर्बत दस्तरखान

घुल-मिल चीनी खो गई, पीला नीबू संत
तर कर दे जो ताप को, बेचैनी का अंत

टूटी अमिया डाल से, इठलाई बाज़ार
मर्तबान मे सज गये, गलका, पना, अचार

बिछड़ी अमिया शाख से, किया पना से जोड़
नमक पुदीना योग से, निकला लू का तोड़

लूर लूर लू घूमती, छिपकर करती वार
पना, छाछ अरु शिकन्जी, बचाव को तैयार

गुंडागर्दी सूरज की,तानाशाही गाह।
जौ, मक्का, गेंहू, चना, सत्तू खोजे राह।।

- त्रिलोचना कौर "तनु"
१ जून २०२४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter