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शरबत
के पैगाम (दोहे) |
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दिनभर झुलसाते भले, जन-जन को आदित्य
पवन कुमारी बाँटती, ठंडा शर्बत नित्य
धीरे-धीरे लीलता, सूरज नदी-सराय
लोग शिकंजी पी रहे, भूल गए हैं चाय
सूरज समझाने लगा, गर्मी का अभिप्राय
ठंडा शर्बत ढूँढ़ता, झुलसा जन समुदाय
धूप-ताप का जब मिला, हमको ओवरडोज
ठंडा शर्बत पी लिया, हमने भी उस रोज
स्वाद, स्वास्थ्य औ शीतलन, का अद्भुत आनंद
गर्मी में करने लगे, शर्बत सभी पसंद
सब सूरज के सामने, डाल रहे हथियार
ठंडा शर्बत कर रहा, केवल उसपर वार
- सत्यशील राम त्रिपाठी
१ जून २०२४ |
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