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        शरबत के पैगाम (दोहे)

 

माली काका बाग में, तोड़ें मीठे आम
मालिन काकी भेजतीं, शरबत के पैग़ाम

बाल शिकंजी पी रहे, खूब मचा है शोर
हुलस-हुलसकर माँगते, दे दो मैया और

रूप रंग रस से सजे, खूब बिक रहे आम
बरबस सबको रोकते, उनके ऊँचे दाम

दादी पंखा झल रहीं, दादा बोले बोल
लू लपटों से सब बचें, ठंडा शरबत घोल

टहनी टहनी फल लदे, मधुर-मधुर वरदान
राहगीर असहाय भी, करते उनका पान

ठंडा शरबत पी रहे, घर में बाल गोपाल
भर किलकारी हँस रहे, फुला-फुलाकर गाल

मीठे फल देते हमें, सुंदर फल औ फूल
पेड़ जीवनाधार हैं, कभी न जाना भूल

- पारुल
१ जून २०२४

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