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         ठंडा शरबत (कुंडलिया)

 


"ठण्डा शरबत" क्या मिला, मन में पहुँची ठण्ड
भूल गया कुछ देर मन, गर्मी प्रबल - प्रचण्ड
गर्मी प्रबल - प्रचण्ड, हृदय को व्याकुल करती
नभ बरसाता अग्नि, तपी भट्टी - सम धरती
यही मेरा सन्देश, मिले जब भी कुछ फ़ुरसत
छोड़ें फुटकर कार्य, घुटक लें "ठण्डा शरबत"



शीतल पेय अनेक हैं, अनन्नास बादाम
सबके सब स्वादिष्ट हैं, लस्सी हो या आम
लस्सी हो या आम, मज़ा अपना है सबका
ठण्डाई को देख, हमारा भी दिल धड़का
है अनार कुछ ख़ास, करे सबका मन चंचल
किन्तु पियें 'खस' आज हृदय हो जाए शीतल


गर्मी के अतिरेक से, व्याकुल हों जब प्राण
शरबत के दो घूँट भी, कर दें तब कल्याण
कर दें तब कल्याण, प्रफुल्लित कर दें मन को
खिलें अंग - प्रत्यंग, मिले नव ऊर्जा तन को
हैं शरबत के भक्त, तभी सारे श्रम - कर्मी
हो सुख की अनुभूति, पराजित होती गर्मी

- भूपेन्द्र सिंह
१ जून २०२४

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