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नीबू पानी लाऊँ मैं
 
जलती धरती, जेठ दुपहरी, पर मजबूरी, जाऊँ मैं ?
घर से बाहर निकल रहे हो नींबू-पानी लाऊँ मैं

बेलगिरी, खस, चंदन वाला क्या मैं शरबत ले आऊँ
रूह-अफ़्ज़ा का बचपन वाला या फिर शेक बनाऊँ मैं

जौ का सत्तू ठंडक देता, नानी मुझे पिलाती थी
मुझको आता नहीं बनाना, कैसे तुम्हें पिलाऊँ मैं

ठंडाई पीकर कल तुमको सारा दिन आराम रहा
आगे' तुम्हारी जैसी इच्छा, अब कितना समझाऊँ मैं

इक दिन सागर तट पर हम तुम ऐसे ही बैठे थे 'रीत'
लहरों का संगीत बजा था, तुमने कहा था, गाऊँ मैं

- परमजीत कौर 'रीत'
१ जून २०२४

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