बातें

 

 
तुम जलेबी की तरह बातें रसीली बोलते हो
और मन को भी घुमा कर
चाशनी में घोलते हो

ये तुम्हारे प्रेम का ही है नशा मुझ पर चढ़ा
पढ़ न पाए पोथियाँ बस ढाई आखर ही पढ़ा
किसलिए चैतन्य सा उन्माद
लेकर डोलते हो

एक मीरा थी जो अद्भुत प्रेमजोगन बावली
एक राधा थी जो मनमोहन हृदय की साँवली
बाँसुरी के सुर मधुर से रास्ता
क्यों रोकते हो

घृष्टता भी है मगर है क्षम्यता भी पास में
द्रोपदी के चीर सी है काम्यता भी रास में
तुम मेरी संजीवनी पर मन को
अक्सर तोलते हो

है बहुत मीठी मधुर ये रीतियाँ भी स्वाद की
जश्न हो या हो मिलन साक्षी रहीं हर वाद की
इस मृदुल मनुहार का संदर्भ
ही तुम खोलते हो

- रंजना गुप्ता
१ अप्रैल २०२२

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