गरम जलेबी

 

 
नव वर्ष, लोहड़ी जब आई
भुग्गा, खजूर, तिलकुट लाई
सर्दी की रात, अलाव पास
रसभरी जलेबी लगी खास
बारहमासी, यह कहलायी

फाल्गुन, बसंत, होली के रंग
संगीत-गीत बौछार संग
मस्ती, ठंडा, गुझिया, फिरनी
गरमा-गरम जलेबी संग
कितनी-कितनी मन को भायी

फागुन, वैशाख चैत्र सावन
रोली, तुलसी, हल्दी, चंदन
जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक कर
शिव परिणय में मुस्काई
मंगलगीत, जलेबी पाई

शरदोत्सव नवरात्र किये
दुर्गा पूजा, वरदान लिये
रावण या बुरी शक्तियों का
जब दहन हुआ, आनंद मग्न
तब भी उमग जलेबी खाई

सावन के झूले जब लगते
रक्षाबंधन के मधुर पाश
मिष्ठान्न भरी उस थाली में
जब बैठ जलेबी साथ-साथ
मन ही मन में थी इतराई

करवा, दीपावलि, भाईदूज
जाएँ उमंग में डूब- डूब
उपहारों में भी छिपी हुई
वह गोल गोल औ' मधुर खूब
सबने मिलकर छककर खायी

मिष्ठान्नों की यह महारानी
दूर देश की बेगानी पर
अपनापन इस कदर मिला
बन गई यहीं की पटरानी
अब तो यह अपनी कहलायी

- मधु संधु
१ अप्रैल २०२२

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