रसमय यह जीवन है

 

 
रसमय यह जीवन है

छोर मिले आपस में लेकिन
अगड़म बगड़म राहें
बेढंगी माया ऐसी कि
काया में ही बाहें
तन चिपचिपा भले हो लेकिन
भीतर सुंदर मन है

स्वादो की तंत्री में इससे
झनझन भारी लिप्सा
चुम्बन चले गले तक फिर भी
मिटती नहीं अभीप्सा
मौज मजा बस तेरा तू तो
रसना का मधुवन है

जुम्मन क्रोध भरे हों जब भी
अलगू से अनबन हो
तू रिश्तों में मीठा घोले
ऐसा अनुपम फन है
ज्वाला बहुत सहन की तूने
रस बरसे यह मन है

- हरिहर झा
१ अप्रैल २०२२

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