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बाँटो सदा मिठास |
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करती बहुत प्रयास न सुलझी
काँटों में थी उलझी - उलझी
मगर जलेबी जैसी बतियाँ
देते रहे मिठास
टेढ़ी -मेढ़ी, उल्टी -सीधी
मेरी मुस्कानों की सीढ़ी
जीवन कैसे पाला-पोसा
याद करेगी आगे पीढ़ी
कठिनाई से डरे नहीं हम
हमसे जीत नहीं पाए ग़म
दर्द हमें सब लगे चाशनी
भरती रहे मिठास
रूप रंग मावे ने खोया
नया रूप चीनी ने पाया
खुद को श्रम में खो देता जो
जग ने उसका गौरव गाया
आशा यदि सुख परिणामों की
यश गाथाओं में नामों की
पाओ कितनी ही कड़ुवाहट
बाँटो सदा मिठास
- डॉ. भावना तिवारी
१ अप्रैल २०२२ |
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