जिंदगी जैसे जलेबी

 

 
रस भरी हो जिंदगी जैसे जलेबी
जिंदगी रस के बिना जंगल जलेबी

इसकी राहों पर इमरती भी चली है
राज करती पर जलेबी हर गली है
सैंकड़ों व्यंजन हैं पर इसका न सानी
स्वाद में लगती ज्यों मिश्री की डली है
तीर्थ हो, मंदिर या घर- बनने लगी है
अब सभी व्रत में भी आलू की जलेबी

इक कड़ाहे में वो पहले रूप पाती
पक के इठलाती हुई ऊपर है आती
तली जाती मालपूए की तरह ही
चाशनी में डालते ही निखर जाती
महकती केसर गुलाबों की महक से
पेश होती हैं ठनक से फिर जलेबी

सखा इसके दूध, रबड़ी और पोहा
समोसों और फाफड़ों ने इसे मोहा
पर जलेबी दूध को आकंठ चाहे
हर मिठाई मानती हैं इसका लोहा
पौष्टिकता के लिये लेते सभी जब
बाद कसरत दूध के संग में जलेबी

- आकुल
१ अप्रैल २०२२

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