|
टेढ़ी-मेढ़ी रसभरी, अजब स्वाद की खान
नाम जलेबी है मगर, मिष्ठानों की जान
सुबह अगर मिल जाय तो, दही-जलेबी संग
छा जाती है हर तरफ़, सोंधी नयी उमंग
सूरत से लगती अजब, मगर स्वाद है मस्त
शान जलेबी की अलग, बाकी व्यंजन पस्त
सुबह दुकानों पर खड़ी, दीवानों की फौज
तुरत जलेबी चाहिए, सबको पानी मौज
हलवाई भी है चतुर, नौकर भी चालाक
संग जलेबी के बिका, दही हुआ आवाक
बापू को सुननी पड़ी, एक नहीं सौ बात
गरम जलेबी खा रहे, बदल रहे हालात
भला कौन है जो करे, खाने से इनकार
मस्त जलेबी के लिये, है सबका इकरार
दूकानों पर दीखते, बड़े-बड़े शौकीन
संग जलेबी जीमते, बीच-बीच नमकीन
- सुबोध श्रीवास्तव
१ अप्रैल २०२२ |