जिंदगी एक जलेबी

 

 
कभी पहेली कभी सहेली
ये जिंदगी है
अनबुझी घुमाव दार जलेबी सी
रस से भरी भी है

गोल गोल घुमाती मुझको
उलझी है जलेबी सी जिंदगी
कभी गर्म तेल सी आपदाएँ आई
तो मैं तप कर निखरी

क्षमताओं को कमी न थीं
आकांक्षाओ की चाशनी में डूबी
मिठास से भर गई
सहरा की लम्बाई नापती
कुछ पाने की चाहत मे
नदी पर्वत मैदान नापती
उलझी है जलेबी सी जिंदगी

शक्ल सूरत टेढी सही
मीठा स्वभाव नहीं छोड़ती जलेबी
आजकल शायर भी इसे देख
शायरी बना रहे है
गोल गोल जलेबी सी शायरी लिख
बातों मे सबको उलझा रहे हैं
अपनी जिंदगी भी
जलेबी सी मीठी जिंदगी बना रहें हैं

- मंजुल भटनागर
१ अप्रैल २०२२

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