एक गुझिया और लो

 

 
एक गुझिया और लो
माधुर्य के विश्वास में

रंग रोगन गीत नारे
कौन अब इनको विचारे
दीन दुनिया दर्द सारे
वो रहेंगे साथ प्यारे
पर्व फिर भी साध लो
आनंद के अहसास में
एक गुझिया बेल लो
मिलकर सहज परिहास में

शोर, शौकत औ चढ़ावा
संस्कारों का दिखावा
झूठ का सौ बार दावा
हर समय नूतन छलावा
छोड़कर पीछे, चलो
उत्साह के आवास में
एक गुझिया गोंठ लो
फिर शिल्प के अभ्यास में

सब दिखावे दूर कर दो
प्रेम से हर दिशा भर दो
मुश्किलों को कठिन डर दो
लक्ष्य को आँखों में घर दो
भूलकर सबकुछ हँसो
बहते हुए मधुमास में
एक गुझिया मुझे भी दो
दूर इस प्रवास में

- पूर्णिमा वर्मन
१ मार्च २०२१

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